एक समय था जब मोटापे का कारण अत्यधिक खाना और आलस समझा जाता था। लेकिन बदलती जीवनशैली के साथ ओबेसिटी भी आम होती गई और इसके अनेक कारणों पर भी ब...
एक समय था जब मोटापे का कारण अत्यधिक खाना और आलस समझा जाता था। लेकिन बदलती जीवनशैली के साथ ओबेसिटी भी आम होती गई और इसके अनेक कारणों पर भी बात होने लगी। जीवनशैली से लेकर थायराइड और अन्य बीमारियां मोटापे के लिए जिम्मेदार हो सकती हैं। वजह चाहे जो भी हो, ओबीस लोगों के साथ बर्ताव अमूमन एक सा ही होता है। यह अलग बर्ताव महिलाओं के साथ खासतौर पर देखा जा सकता है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि मोटा होना समाज में हीन ही समझा जाता है। मोटे व्यक्ति अक्सर तिरस्कार या मजाक का शिकार होते हैं। लेकिन महिलाओं में यह हास्य का विषय होने से कहीं अधिक हीनता का कारण बन जाता है। यह हीन भावना तनाव, एंग्जायटी और ईटिंग डिसॉर्डर से लेकर डिप्रेशन जैसी गंभीर मानसिक बीमारियों का कारण बन सकती है।
लेकिन मोटापे और मानसिक स्वास्थ्य का संबंध इतना सीधा भी नहीं है।
इस मानसिक स्वास्थ्य सप्ताह, हार्वर्ड मेन्टल हेल्थ लेटर में इस विषय पर अध्ययन किया गया कि मोटापे का मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है। आइये इस को विस्तार से समझते हैं-
समाजिक भेदभाव का शिकार होने पर सोशल एंग्जायटी हो सकती है
हमारी फिल्मों से लेकर टीवी, विज्ञापनों और गानों तक में, खूबसूरती की परिभाषा सुगठित शरीर ही है, और यह महिलाओं के लिए विशेष रूप से अनिवार्य है। हम पतले होने के पीछे इस कदर भाग रहे हैं कि फिटनेस पीछे छूट गयी है और यह चिंता का विषय है।
जहां एक ओर महिलाएं, अभिनेत्रियों जैसा फिगर पाने की चाहत में खुद को भूखा रख रही हैं, वहीं दूसरी ओर ओवर वेट या ओबीस महिलाओं को हीन दृष्टि से देखा जाता है। यह सामाजिक भेदभाव परिवार से लेकर ऑफिस और शादी तक में नजर आता है। निरंतर इस तरह का बर्ताव ओवर वेट महिलाओं में हीन भावना पैदा करता है।
इसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर कुछ इस तरह होता है कि अधिकांश महिलाएं पारिवारिक समारोहों में जाने से ही बचने लगती हैं, कहती है हार्वर्ड की स्टडी। यह स्थिति बढ़ते-बढ़ते सोशल एंग्जायटी का रूप ले लेती है।
डिप्रेशन और मोटापे में है जटिल सम्बन्ध
यह सवाल अक्सर खड़ा होता है कि क्या मोटापे के कारण व्यक्ति अवसाद का शिकार होता है या अवसाद से मोटापा बढ़ता है? अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन के अनुसार मोटापा एक मानसिक बीमारी नही है, लेकिन यह डिप्रेशन से बहुत करीब से जुड़ी हुई है। डिप्रेशन मेटाबॉलिज्म धीमा कर सकता है जिससे कैलोरी कम बर्न होती हैं। यही नहीं डिप्रेशन के कारण लोग कम्फर्ट फूड जैसे मीठा या तला हुआ भोजन खाने लगते हैं। यह इमोशनल ईटिंग आपके पेट पर चर्बी बढ़ाती है और मोटापे का कारण बनती है।
लेकिन हार्वर्ड मेन्टल हेल्थ पेपर के अनुसार दोनों ही कारक एक दूसरे पर आश्रित हैं। मोटापे के कारण आने वाली हीन भावना अवसाद को जन्म दे सकती है और बदले में अवसाद के कारण मोटापा और बढ़ता जाता है।
इस अध्ययन में शोधार्थियों ने माना कि मोटापे और अवसाद के संबंध में कई विविधताएं हो सकती हैं। हर व्यक्ति की मानसिक रूप रेखा अलग है। इसलिए अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन की थ्योरी में कई अपवाद हो सकते हैं।
एक्सरसाइज के मानसिक फायदे नहीं मिलने देता है मोटापा
एक्सरसाइज न सिर्फ आपके शरीर को बल्कि आपके मस्तिष्क को भी बहुत फायदे पहुंचाती है। एक्सरसाइज करने से डोपामीन बढ़ता है और कॉर्टिसोल (स्ट्रेस हॉर्मोन) कम होता है। लेकिन ओबीस या अत्यधिक मोटे व्यक्ति कार्डियो या अन्य हाई इंटेनसिटी वर्कआउट करने में असमर्थ होते हैं। यही कारण है कि उन्हें एक्सरसाइज के मानसिक लाभ नहीं मिल पाते।
क्या करें-
महत्वपूर्ण है कि मोटापा कम करने के लिए एक्सरसाइज और डाइटिंग के साथ-साथ मानसिक तरीकों का भी सहारा लिया जाए। एक्सपर्ट डायटीशियन अक्सर अत्यधिक मोटे लोगों को वजन कम करने के लिए डाइट के साथ-साथ बेहवियर थेरेपी का सुझाव देते हैं।
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जब आप खुद को अपनाती हैं और खुश रहती हैं, तो आपका शरीर ज्यादा स्वस्थ महसूस करता है।
अंत में, यह समझना जरूरी है कि फिटनेस महत्वपूर्ण है आपके शरीर का साइज नहीं। फिट और खुश रहने की कोशिश करें।
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